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Tuesday, 29 August 2017

धैर्य कि परीक्षा

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एक बार की बात है महात्मा बुद्ध किसी गॉव के बाहर पेड़ के नीचे ध्यानमग्न होकर बैठे थे | गॉव से बड़ी मात्रा में लोग एकत्र होकर उनके दर्शन के लिए जा रहे थे | उसी गॉव में एक व्यक्ति था लोकेश जो गॉव वालों की इस बात पर हरगिज़ यकीन नहीं करता था कि बुद्ध हमेशा शांत रहते है और दूसरों के मन को भी शीतलता प्रदान करते है | एक दिन लोकेश ने सोचा कि क्यों ना खुद चल कर बुद्ध की परीक्षा ली जाये और वह कुछ योजना बना कर उनसे मिलने गॉव के बाहर चला गया | वहां पंहुचा तो देखा कि बुद्ध अपनी आँखे बंद कर शांत मुद्रा में ध्यान लगाकर बैठे हुए है |  उनके चेहरे पर अलौकिक तेज का संचार हो रहा था | लोकेश बुद्ध के समीप गया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा | बुद्ध ने आँखे तो खोल ली लेकिन बिलकुल धैर्य के साथ चिल्लाते हुए लोकेश को देखते रहे | जब लोकेश बोलते बोलते थक गया तब महात्मा बोले आप आराम से बैठिये, थोड़ा सांस ले लीजिये | लोकेश को बड़ी हैरानी हुई | वह महात्मा से बोलै - मैंने आपको इतना बुरा-भला कहा, और आप मुझ से जरा भी नाराज़ नहीं हुए, बल्कि मुझे आराम करने के लिए कह रहे है | तब महात्मा बुद्ध थोड़ा मुस्कुराये और बोले - "देखो, तुमने जो बुरे वचन कहे, वो मैने लिए ही नहीं| इसलिए वह तुम्हारे पास ही रह गए |" बुद्ध की धैर्येपूर्ण बात सुनकर लोकेश शर्मसार हो गया |


जीवन मंत्र - कदापि अपने मन का धैर्य ना खोएं, यही आपकी ताकत है और समस्या का समाधान भी |

Tuesday, 20 June 2017

रूप बड़ा की गुण


एक बार की बात है, एक राजा के चार पुत्र थे | इनमे से तीन राजकुमार तो बेहद सूंदर थे लेकिन चौथा उतना ही कुरूप था | तीनो सूंदर राजकुमार रूपवान तो बहुत थे, लेकिन गुणों के मामले में बिल्कुल शून्य | वही चौथा राजकुमार बेहद गुणी था | तीनो राजकुमार और राजा खुद भी बात-बात पर चौथे राजकुमार का अपमान करते रहते | उसे इस व्यव्हार से दुःख पहुँचता था लेकिन वह कुछ कह नहीं पता था | लेकिन एक बार वह निश्चय करके राजा के पास पंहुचा और बोला - पिताजी क्या गुण का कोई मोल नहीं? क्या रूप ही सब कुछ होता है? राजा ने अपने ही पुत्र पर व्यंग करते हुआ कहा - जिसमे रूप ही नहीं, उसमे भला गुण कहा से आएगा? इसके बाद वह राजकुमार राज्य छोड़कर वन में चला गया | कई वर्ष बीत गए | एक दिन वह धनुष-बाण का अभ्यास कर रहा था तो उसने तीन लोगो को देखा जो फटे कपड़ो में थे और जमीन से उठा कर फल खा रहे थे | वह इस तीनो राजकुमारों को देख कर बोला - मेरे भाइयों, यह सब क्या हुआ? तब उन्होंने बताया की छोटे भाई तुम्हारे राज्य छोड़ कर चले जाने के बाद पडोसी राजा ने हमला बोल दिया था | हम तीनो राजकुमार भाग निकले और राजा को भी मार दिया | क्योकि तीनो के पास कोई गुण नहीं था दाने दाने के लिए तरसने लगे| तीनो भाई बोले - तुम हमें माफ़ कर दो | चौथे राजकुमार ने अपनी सेना लेकर शत्रु राजा पर हमला बोल दिया और राज्य वापस लिया | अब इसी भाई की सूझ बुझ से राज्य चलाया जाने लगा |

जीवन मंत्र - रूप से कई ज्यादा महत्व व्यक्ति के गुणों का होता है | गुणी व्यक्ति सदैव स्वाभिमान से जीता है |

Sunday, 18 June 2017

जीवन में प्राथमिकताएं बनाये


एक बार की बात है, गुरूजी कक्षा में आये और छात्रों से बोले - आज तुम्हे जीवन का एक अहम पाठ पढ़ाना है | फिर गुरूजी ने एक कांच का जार मेज पैर रखा और थैले से निकलकर टेनिस की गेंदे उसमे डाल दी | फिर छात्रों से पूछा - जार भर गया क्या? छात्र बोले - हां गुरूजी, भर गया | अब गुरूजी ने थैले में से कंकड़ निकले और जार में डाल दिए | कंकड़ जार की खली बची जगहों में बैठ गए तो फिर से मास्टर जी ने पूछा - अभ भर गया ना जार ? छात्रों ने फिर कहा - हाँ, अब तो पक्का भर गया गुरूजी | अब उन्होंने रेत निकली और उसे धीरे धीरे जार में डालना शुरू किया | रेत ने भी अपनी जगह बना ली | फिर गुरूजी का वही सवाल था और छात्रों का भी वही जवाब रहा | अब गुरूजी ने अपना चाय का भरा हुआ कब इस जार में उड़ेल दिया | रेत ने साड़ी चाय को सोख लिया | छात्रों को खुश समझ नहीं आया तो गुरूजी बोले - कांच के इस जार को तुम अपना जीवन समझो, गेंदे इसका सबसे अहम भाग यानी भगवान, परिवार, स्वास्थ, मित्र और बच्चे है | कंकड़ तुम्हारी नौकरी, मकान, गाडी है | रेत का मतलब छोटी मोटी बेकार की बातें और झगडे है | पहले रेत भर देते तो गेंद के लिए जगह नहीं रहती | इसलिए प्राथमिकताएं तय करे | एक ने पूछ लिया - फिर ये चाय क्या थी गुरूजी? गुरूजी मुस्कुराते हुए बोले - जीवन चाहें कितना भी परिपूर्ण लगे, दोस्तों के साथ चाय पीने की जगह हमेशा रहे |

जीवन मंत्र - जीवन अनमोल और कीमती है इसलिए प्राथमिकता बनाये तथा व्यर्थ की बातों में इसे ना गंवा दे | सम्पूर्णता से जिएं |

Wednesday, 31 May 2017

भावना का महत्त्व


एक बार की बात है गौतमबुद्ध पाटलिपुत्र पहुंचे तो वहां का हर व्यक्ति उन्हें उपहार देने लगा | राजा ने भी उन्हें बेहद कीमती हीरे मोती के उपहार दिए |  बुद्ध ने इन्हे एक हाथ से स्वीकार किया | इसके बाद मंत्रियों, साहूकारों, सेठों ने भी कीमती उपहार दिए | बुद्ध ने उन्हें भी एक हाथ से स्वीकार किया | इतने में एक बूढ़ी महिला वहां आई | बुद्ध से मिलकर वह बोली - प्रभु, जब आपकी आने का समाचार मिला, तो में अनार खा रही थी | मेरे पास और कुछ तो नहीं है , लेकिन अपना आधा खाया हुआ अनार आपके लिए ले आई हूँ| उम्मीद है, आप मेरी इस छोटी सी भेट को स्वीकार कर लेंगे | बुद्ध ने दोनों हाथों से वह आधा अनार स्वीकार कर लिया | यह देख राजा ने बुद्ध से कहा - महाराज एक प्रश्न है | बुद्घ ने जब पूछने को कहा तो राजा ने कहा - हमारे कीमती उपहार आपने एक हाथ से लिए जबकि उस महिला के जूठे फल के लिए दोनों हाथ फैला दिए | ऐसा क्यों ? बुद्ध बोले - आपके डिम्ति उपहार आपकी संपत्ति का छोटा सा हिस्सा है | जबकि इस बुजुर्ग महिला ने मुझे अपने मुँह का निवाला ही दे दिया | इसकी भैंट कहीं महान है | इसलिए मैने दोनों हाथों से लिया |

जीवन मंत्र - उपहार से कहीं ज्यादा महत्व इसके पीछे छिपी भावना का है | 

Tuesday, 30 May 2017

ना हो बर्बादी



एक बार की बात है गाँधी जी को किसी काम के लिए नीम के पत्तों की जरुरत पड़ी | उन्होंने अपने आश्रम में एक युवक से कहा कि बाहर जाओ और दो पत्ती नीम तोड़ के ले आओ | वह युवक गया और आश्रम में लगे पेड़ से नीम की एक टहनी तोड़कर ले आया | उसने नीम के टहनी लाकर गांधीजी को दे दी | गांधीजी ने जब नीम के टहनी देखी तो वे दुखी हो गए | गाँधी जी बोले - अब मै इस नीम का इस्तेमाल नहीं कर पाउँगा | युवक को कुछ समझ नहीं आया | वह आश्चर्य से गांधीजी की ओर देखने लगा | गांधीजी बोले - मुझे खुद जाकर नीम लानी चाहिए थी | युवक से रहा ना गया और उसने गांधीजी से दुखी होने का कारण पूछा तो गांधीजी बोले - मैने तुमसे दो पत्ती नीम की मांगी थी | तुम पूरी टहनी ले आए हो | इससे शेष पत्तियां बेकार हो गई है | मुझे इसी बात का दुःख है | युवक के मन में अभी भी संशय कायम था | गांधीजी ने उसे कहा - हमें उतनी ही वास्तु लेनी चाहिए, जिसका उचित उपभोग हम कर सके | बेवजह ज्यादा वस्तुएं ले लेने से या संग्रह करके रख लेने का तरीका गलत है | इससे प्रकृति को भी नुकसान पहुँचता है, जैसा कि अभी हुआ है | युवक अब मूल बात समझ गया था कि गाँधी जी को प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी से दुःख पंहुचा है | इससे युवक ने भविष्य में सावधानी बरतने का निश्चय किया |

जीवन मंत्र - हमें बेवजह चीज़ की बर्बादी नहीं करनी चाहिए, उतना ही ले जितनी आवश्यकता हो |

Sunday, 7 May 2017

भगवान की गोद


एक बार की बात है, एक आदमी भगवान का बड़ा भक्त था | बड़े प्रेम भाव के साथ उनकी भक्ति किया करता था |  एक दिन भगवान से कहने लगा - में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ, पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई | में चाहता हूँ कि आप भले ही साक्षात् दर्शन न दे, परन्तु कुछ ऐसा करे कि मुझे आपके साथ होने का अनुभव तो हो | भगवान ने कहा ठीक है | तुम रोज सुबहे समुंद्र किनारे सैर पर जाते हो न | कल से रोज रेत पर तुम्हे तुम्हारे पैरों के अलावा दो पैरों के निशान और मिलेंगे | वे निशान मेरे होंगे | इस तरह तुम्हे रोज मेरी अनुभूति होगी | अब वह जब भी  सैर पर जाता तो अपने पैरों के निशान के साथ दो और पैरों के निशान देख बहुत खुश होता | एक बार उसे व्यापार में बहुत घाटा हुआ, भारी नुकसान की वजह से सब कुछ बिक गया और वह सड़क पर आ गया | उसके सभी परिचित ने उससे मुँह मोड़ लिया | कंगाल हो जाने के बाद जब वह सैर करने गया तो उसे रेत पर भी सिर्फ दो ही पैरों के निशान दिखे | उसे बहुत दुःख हुआ कि भगवान ने भी उसका साथ छोड़ दिया | धीरे धीरे उसकी आर्थिक हालत सुधरी तो लोग तो लौटे, साथ ही रेत पर दो निशान भी लौट आये | अब वह भगवन से नाराज होकर बोला - आपने भी मुसीबत में साथ छोड़ दिया था ? रेत पर सिर्फ दो निशान होते थे | तब भगवान बोले - में ऐसा कैसे कर सकता हूँ ? तब तुम इतना टूट गए थे कि चलने लायक भी नहीं थे | मैंने तुम्हे अपनी गोद में ले लिया था | वे निशान मेरे ही पैरों के थे | अब तुम फिर समर्थ हो तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है |

जीवन मंत्र - खुद को कभी अकेला न समझे, फिर मुसीबत से उबरने की हिम्मत आ जाएगी |

Sunday, 26 March 2017

सन्देश समानता का


एक बार की बात है, स्वामी रामानुजाचार्य शरीर से काफी कमजोर थे । वह रोजाना गंगा स्नान के बाद ही कोई काम करते थे । घाट की सीढ़ियां बहुत ऊँची थी इसलिए उन्हें चढ़ने और उतरने में काफी दिक्कत होती थी । वह जाते समय एक ब्राह्मण की मदद लेते और लौटते समय एक निम्न जाति के एक व्यक्ति के कंधे पर हाथ रख कर ऊपर आते ।  उनके इस व्यवहार को साधु संत उचित नहीं मानते थे । लेकिन संकोचवश उनसे कुछ कह नहीं पाते थे । एक बार एक शिष्य से रहा नहीं गया और उसने कह ही दिया, "स्वामीजी, आपके स्नान का क्या लाभ ? आप स्नान से पहले तो ब्राह्मण की मदद लेते है लेकिन शुद्ध होकर लौटते समय आप निम्न  जाति के आदमी के कंधो का सहारा लेते है । इससे तो आप स्नान के बाद भी अपवित्र रहते है ।" स्वामी से मुस्कुराते हुए बोले, 'यह तुम्हारे मन का भ्रम है बेटा । नहाने में केवल मेरे ऊपरी शरीर का मैल धुलता है । शरीर के अंदर का मैल तो वैसे का वैसा ही रहता है । यह तो उस व्यक्ति के साथ आने पर ही धुलता है, जिसे तुम नीची जाति का कहते हो । उसे गले लगा कर में समानता का सन्देश देता हूँ । इससे मेरा मन शुद्ध हो जाता है |'  स्वामी जी के मुख से ऐसे शब्द सुनकर वह शिष्य आगे कुछ बोल ही ना सका ।

जीवन मंत्र - भेद भाव रखना गलत है तथा तन और मन दोनों को शुद्ध रखे |

Saturday, 25 March 2017

चार मोमबत्तियां


एक बार की बात है, 4 मोमबत्तिया अँधेरे में जल रही थी । अचानक ही वे एक दूसरे से अपने दिल की बात करने लगे । पहली  मोमबती बोली, "में शांति हूँ । लेकिन हर तरफ मची भागदौड़ और आपाधापी को देख कर लगता है कि किसी को मेरी जरुरत ही नहीं है । में यहाँ और नहीं रह सकती ।" यह कहते ही वह बुझ गई । दूसरी मोमबत्ती बोली - "में विश्वास हूं लेकिन हर ओर  फैले झूठ-फरेब को देख कर लगता है कि मेरी किसी को जरुरत नहीं है । में भी यहाँ नहीं रहना चाहती |" यह कह कर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई । अब तीसरी मोमबत्ती भी बड़े दुःख के साथ बोली - " में प्रेम हूँ । में हमेशा जलती रह सकती हूँ लेकिन मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं रह गया । मेरे यहाँ रहने का कोई तात्पर्य नहीं ।" और ये कह कर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई । तभी एक छोटा बच्चा कमरे में आया तो रुँआसा हो कर बोला - "तुम तीनो मोमबत्तियां बुझ क्यों गई ?" तब चौथी मोमबत्ती बोली, "रोओ मत बच्चे, में आशा हूँ| में जल रही हूं । जब तक में हूँ तब तक हम दूसरी मोमबत्तियों को दुबारा जला सकते है |" बच्चे की आँखों में चमक आ गई और उसने आशा से प्रेम, विश्वास  और शांति को फिर से जला दिया ।

जीवन मंत्र - अगर आप आशावान है तो जीवन में सब संभव है । 

आत्मग्लानि - अच्छाई की निशानी


एक बार की बात है एक थे बाबा भारती और एक उनका घोड़ा था जिसका नाम धनु था ।  धनु ऐसा फुर्तीला था की हवा से बातें करता । बाबा उसका खयाल अपने से भी ज्यादा रखते थे । एक बार एक डाकू उनके पास आया । धनु की फुर्ती देख कर वह उस पर मोहित हो गया । बाबा से कहने लगा की यह घोडा मुझे दे दो । बाबा ने मन किया तो जाते जाते बोला कि घोड़ा तो में लेकर ही रहूँगा बाबा । अब क्या था बाबा न सो पाएं, न खा पाएं । रात में उठ उठ कर धनु को देखने अस्तबल जाते । उनके मन में के दर बैठ गया एक दिन धनु पर सवार होकर बाबा भारती जंगल से गुजर रहे थे तो एक अपाहिज मिला । वह बोला कि बाबा, कृपा होगी अगर आप मुझे पास के गॉव में छोड़ दे तो, में चलने में असमर्थ हूं । बाबा ने हाथ देकर उसे अपने साथ बैठा लिया । कुछ ही दूर गए थे कि अपाहिज ने बाबा को धक्का देकर घोड़े से गिरा दिया और जाते जाते बोला कि घोडा तो मेने ले लिया बाबा भर्ती । बाबा ने पीछे से आवाज़ देकर कहा कि ले लो, लेकिन एक बात सुनते जाओ । वह लौटकर आया तो तो बाबा ने कहा कि इस बारे में किसी और को न कहना, नहीं तो कोई लाचारों की बात पर यकीं नहीं करेगा । डाकू उस समय तो घोडा ले गया लेकिन कुछ ही दिन में वह इतनी आत्मग्लानि से भर गया कि वह घोडा खुद अस्तबल में छोड़ कर चला गया ।

जीवन मंत्र - अच्छाई से बुरी सोच को भी बदला जा सकता है । 

Sunday, 12 March 2017

पछतावा मजाक का


एक बार की बात है, एक लड़की थी प्रिया जो गॉव से शहर पड़ने आई थी और एक अच्छे स्कूल में दाखिल भी हो गई । स्कूल के बच्चे प्रिया से ज्यादा बात नहीं किया करते थे । एक बार जब क्लास में टीचर आई  तो सब उनका अभिवादन करते हुए उठ गए तब प्रिया के मुंह से 'गुड मॉर्निंग' की जगह 'गुड मोरिंग' बोला तो सब बच्चों ने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया । अब तो वो कुछ भी बोले, एक ख़ास समूह उसकी देसी लहजे का मजाक बनाने लग जाता । इस समूह की सबसे चर्चित लड़की थी करिश्मा । उसने घर जा कर प्रिया की नक़ल उतारकर मजाक बनाया तो उसकी माँ ने उसे ऐसा करे से मना किया । लेकिन करिश्मा नहीं मानी और समय बीतता गया । अब क्लास में मैडम या सर कोई भी सवाल पूछते तो एक हाथ हमेशा उठता था और वो थी प्रिया । धीरे धीरे बच्चे उससे दोस्ती करने लग गए पर करिश्मा का समूह अलग ही था । एक दिन करिश्मा बहुत बीमार पड़ गई । कई दिनों तक स्कूल नहीं आई तो स्कूल से अगर सबसे पहले उससे मिलने कोई पंहुचा तो वह प्रिया थी । करिश्मा को अपने किये पर पछतावा हुआ । प्रिया ने उससे कहा की वह आराम करे और स्कूल के काम में वह उसकी मदद कर देगी । करिश्मा को अब अपने किये पर बहुत पछतावा होने लगा । उसने प्रिया से माफ़ी मांगी और कहा की वह भी अंग्रेजी सुधारने में उसकी मदद करेगी । तब से वह दोनों अच्छी सहेलिया बन गई ।

जीवन मंत्र - किसी का व्यर्थ ही मजाक न बनाये, वह आपसे कही काबिल हो सकता है । 

Sunday, 26 February 2017

माँ का त्याग


एक बार की बात है, एक बच्चा था मोहित । उसकी माँ एक आँख से कानी थी । जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता गया, उसे अपनी माँ की इस शक्ल-सूरत पर थोड़ी शर्मिंदगी सी महसूस होने लगी । वह अपनी माँ को अपने स्कूल आने से मना करता था क्योंकि स्कूल के बच्चे मोहित की माँ लो लेकर उसका मजाक उड़ाते थे । और बड़ा होने पर मोहित किसी भी जगह सार्वजनिक तौर पर अपनी माँ के साथ जाने से बचने लगा । एक बार उसकी माँ किसी काम से उसके कॉलेज के पास गई तो वहां मोहित ने उसे देख लिया और घर आते ही अपनी माँ को बहुत डांटने लगा । गुस्से में अपना आपा खो चूका मोहित बोला - कितनी बार कहा है, जहा में होता हूँ, वहां आसपास मत आया करो । तुम्हारी वजह से मुझे सुनना पड़ता है । तुम्हारी इस एक आँख की वजह से लोग मुझे ताने मारते है । अब माँ से रहा न गया । उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे । वह बोली - बेटा, मेरी हमेशा से दो ही आँखे थी और मुझे उन दोनों से दिखता था । बचपन में एक दुर्घटना हो गई थी, जिसके कारण तुम्हारी एक आँख ख़राब हो गई थी और तुम उससे बिलकुल देख नहीं पा रहे थे । तब डॉक्टर ने कहा था कि कोई तुम्हे एक आँख दे दे तो तुम फिर से देख सकोगे । तब मैंने तुम्हे अपनी आँख ये सोच कर दी थी, कि में तो दुनिया देख चुकी, यह तुम्हे दे देती हूँ, नहीं तो कल को लोग तुम्हे एक आँख वाला कह कर चिढ़ाएंगे । यह कह कर माँ अपने काम में व्यस्त हो गई । मोहित अपने शब्दो पर बेहत शर्मिंदा था और उस दिन के बाद से उसने अपनी माँ को दुःख नहीं दिया ।

जीवन मंत्र - माता पिता का सदैव आदर सम्मान करे । 

Saturday, 25 February 2017

सूझ-बूझ


एक बार की बात है, एक किसान अपने खेत से काम कर के घर को लौट रहा था । काफी थका होने कारण उसे भूख भी लग रही थी पर उसकी जेब में थोड़े सिक्के ही थे । रास्ते में  हलवाई की  दुकान पड़ती थी । किसान मिठाई की दूकान पर रुका और उनकी सुगंध का आनंद लेने लग गया । हलवाई ने उसे ऐसा करते देखा तो उसे कुटिलता सूझी । जैसे ही किसान लौटने लगा, हलवाई ने उसे रोक लिया । किसान हैरान होकर देखने लगा । हलवाई बोला - "पैसे निकालो" । किसान बोला - "किस बात के पैसे ? मैंने  तो मिठाई खाई ही नहीं।" हलवाई बोला, तुमने मिठाई खाई भले ही न हो लेकिन  इतनी देर से खड़े होकर उसकी खुशबु का आनंद तो लिया है ना । मिठाई की खुशबू लेना मिठाई खाने के बराबर है । तो तुम्हे उस खुशबू का आनंद उठाने के ही पैसे भरने होंगे नहीं तो में तुम्हे जाने नहीं दूंगा । किसान पहले तो बहुत घबरा गया लेकिन थोड़ी सूझ-बूझ बरतते हुए उसने अपनी जेब से सिक्के निकले । उन सिक्कों को अपने दोनों हाथों के बीच डालकर जोर से खनकाया । जब हलवाई ने उन सिक्को की खनक सुन ली तब किसान सिक्कों को जेब में रख कर वहां से जाने लगा । हलवाई ने फिर से उसे रोक कर पैसे मांगे तो किसान बोला - जिस तरह मिठाई की खुशबू लेना मिठाई खाने के बराबर है, उसी तरह सिक्कों की खनक सुनना पैसे लेने के बराबर है ।

जीवन मंत्र - जीवन की हर मुश्किल संयम और सूझ बुझ से हल की जा सकती है | 

Sunday, 19 February 2017

क्षमताओं की उड़ान


एक बार की बात है, एक राजा को किसी ने उपहार में दो बहुत अच्छी नस्ल के बाज दिए । राजा को दोनों बहुत पसंद आये और राजा ने एक सेवक उनकी सेवा के लिए नियुक्त भी कर दिया । कुछ महीनो के बाद राजा उन बाजों को देखने उस जगह पहुँच गया जहाँ उन्हें पाला जा रहा था । राजा ने देखा की दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे । राजा ने सेवक से कहा, "में इन्हें उड़ते देखना चाहता हूं |" सेवक से इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे लेकिन एक बाज तो बहुत ऊंचा उड़ता रहा, दूसरा कुछ ऊपर जाकर वापिस आकर उसी डाल पर बैठ गया जहां से उड़ा था । राजा ने प्रश्न किया, "ये क्या है ? एक उड़ता जा रहा है, जबकि यह उड़ना ही नहीं चाह रहा |" सेवक बोला, "इसके साथ यही समस्या है, यह डाल छोड़ना ही नहीं चाहता ।" यह सुन राजा ने घोषणा करवा दी, जो इस बाज को उड़ना सिखाएगा, उसे मुह माँगा ईनाम मिलेगा । बड़े बड़े विद्वानों ने कोशिश कर ली लेकिन बाज थोड़ा सा उड़कर वापिस डाल पर ही आ जाता था । एक दिन एक किसान आया । उसने राजा से बाज को उड़ना सीखने की अनुमति मांगी । राजा ने अपनी स्वीकृति भी दे दी । अगले ही दिन से बाज उड़ने लगा । राजा को बड़ा आश्चर्ये हुआ । राजा ने पूछा, "तुमने ये कैसे किया ?" किसान बोला, "में तो साधारण पुरुष हूं । मेने वो डाल ही काट डाली, जिस पर बैठने का यह आदि हो गया था ।"
किसान से खुश होकर राजा ने उसे मुँह माँगा इनाम दिया ।

जीवन मंत्र - अपनी क्षमतायों को विस्तार देने से मनुष्य किसी भी बुलंदियों को हासिल कर सकता है । 

Friday, 17 February 2017

ना हो बुरी आदतें


एक बार की बात है एक नदी में एक रीछ बहता हुआ जा रहा था । वह ज़िंदा था और पास में ही एक साधु स्नान कर रहा था । साधु ने जब बहते हुए रीछ की कमर देखी तो उसे लगा की वह एक कम्बल है । कम्बल का लालच करके साधु उसे निकालने के लिए तैरकर नदी के बीचों-बीच पहुँच गया । उसने रीछ को पकड़ा और घर ले जाने के लिए उसे किनारे की ओर खीचने लगा । मगर रीछ तो ज़िंदा था, तो उसने साधु को कसकर पकड़ लिया ताकि नदी के प्रवाह से बाहर निकला जा सके । दोनों एक दूसरे से पाने की बीच में ही उलझने लगे । किनारे पैर एक दूसरा साधु था । उसने साधु को पाने में हाथ पैर मरते देखा तो वही से चिल्लाया, 'कम्बल हाथ नहीं आ रहा तो उसे छोड़ दो । वापस आ जाओ ।' यह सुनकर साधु ने एकदम निराश मन से उसे जवाब दिया, में तो कम्बल छोड़ने की पूरी कोशिश कर रह हु लेकिन इसने मुझे ऐसा जकड लिया है की इससे छूटने का कोई विकल्प ही नहीं मिल रहा ।'  ठीक यही हालात इंसान की तब होती है जब वह ख़राब आदतों का शिकार हो जाता है । उसके साथ उसका पूरा परिवार और समाज भी किसी न किसी रूप में कष्ट झेलता है । लेकिन फिर वह व्यक्ति कितनी भी कोशिश करे, पुरानी और बुरी आदते उसका पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेती । इसलिए बुरी आदतों से सदैव दूर रहना चाहिए ।

जीवन मंत्र - बुरी आदतों से सदैव दुरी बनाये रखे |

पेन्सिल की सीख


एक बार की बात है, रोहन ने अपनी माँ को कुछ लिखते हुए देखा, तो बोला, 'माँ, आप पेंसिल से क्यों लिख रही हो?' माँ बोली, 'बेटा, मुझे पेंसिल से लिखना पसंद है । इसकी बहुत खुबियां है |' रोहन चौका और बोला, 'दिखने में तो ये और पेंसिलों की तरह ही है । लिखने के अलावा इसकी और क्या खासियत है ?' माँ बोली - 'यह जीवन से जुडी कई अहम सीखे हमें देती है । इसके ५ गुण अगर तुम अपना लो, तो संसार में शांतिपूर्वक रह सकोगे ।
पहला गुण- तुम्हारे अंदर बड़ी से बड़ी उपलब्धि हासिल करने की योग्यता है लेकिन तुम्हे सही दिखा निर्देशन चाहिए । ये दिशा निर्देश वह ईश्वर देगा और हमेशा अछि राह पर चलाएगा ।
दूसरा गुण- बेटा, लिखते लिखते बिच में रुकना पड़ता है । पेन्सिल की नोंक को पैना करना पड़ता है । इससे इसे कष्ट होता है लेकिन यह एच लिख पाती है । इसलिए अपने दुःख, हार को धैर्य से सहन करो ।
तीसरा गुण- पेन्सिल गलतियां सुधारने के लिए रबड़ के प्रयोग की इजाजत देती है । इसलिए कोई गलती को तो उसे सुधार लो ।
 चौथा गुण- पेन्सिल में महत्व बाहरी लकड़ी का नहीं, अंदर के ग्रेफाइट का है । इसलिए अपने बाहरी रूप से ज्यादा गौर अपने अंदर चल रहे विचारों पर करें ।
पांचवा गुण- पेन्सिल हमेशा निशान छोड़ जाती है । तुम भी अपने कामों से अच्छे निशान छोड़ो ।'

जीवन मंत्र - छोटी सी चीज़ भी जीवन में बड़ी सीख दे जाती है  । 

Monday, 6 February 2017

वजन की ब्रेड


एक बार की बात है, केक-ब्रेड बनाने वाले बेकर ने एक किसान से एक किलो मक्ख़न ख़रीदा । घर जाकर उसने सोचा कि क्यों न इसे तोल कर देख लूं ? उसने जब मक्खन तोला तो वो एक किलो से थोड़ा कम निकला । बेकर के गुस्से का अब ठिकाना न रहा । उसने मक्खन को संभाल कर रखा और अदालत में पहुँच गया । किसान को भी बुलाया गया अदालत में सुनवाई के लिए । जज ने किसान से पूछा कि क्या तुम वजन मापने के लिए किसी चीज़ का इस्तमाल करते हो? किसान ने कहा, 'नहीं, साहब| हमें बाटों से वजन करना आता नहीं है । हम तो एक चीज़ के बजन के आधार पर दूसरी चीज़ का वजन तय करते है ।' जज ने पूछा, 'क्या मतलब है तुम्हारा?' किसान बोला, 'जज साहब, बहुत पहले से यह बेकर मेरे से मक्खन खरीदने आता रहा है । यह मुझसे मक्खन ले जाता है और एक पैमाने पर वजन नापकर उतने ही वजन की ब्रेड मुझे दे जाता है । अगर मेरे द्वारा दिया जाने वाला मक्खन एक किलो से कम है तो इसके ये में या मेरा मापक नहीं बल्कि खुद यह बेकर ही जिम्मेदार है । क्योकि इसने मुझे पहले ब्रेड का वजन कम करके दिया, जिसके परिणामस्वरूप मक्खन का वजन भी कम हो गया ।'

जीवन मंत्र - जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा है फल मिलता है |

Sunday, 5 February 2017

सड़ा टमाटर


एक बार की बात है, एक व्यक्ति का बेटा बुरी संगत में फंस गया । अपने पिता के लाख बार मना करने पर भी वह उन्ही लोगो के साथ घूमता रहता और कहता कि किसी के साथ उठने-बैठने से कोई बिगड़ नहीं जाता है । एक दिन उसके पिता ने उसे समझाने के लिए रास्ता निकाला । वे बाजार से टमाटर खरीद कर ले आए ।  इन टमाटरों के साथ वे एक सड़ा-गाला टमाटर भी लेकर आ गये । उन्होंने उन टमाटरों के दो थैले बनाये । अपने बेटे को बुला कर कहा कि इन दोनों थैलो को अलग अलग जगह रख कर आओ । बेटे को कुछ समझ नहीं आये पर जैसा उनके पिता ने कहा उनसे वैसा ही किया । तभी उन्होंने अलग से लाया हुआ सड़ा गला हुआ टमाटर निकाला और कहा की बाकि के टमाटर तो सही है यही बस थोड़ा गाला हुआ है में इसे भी इसी एक थैले में रख देता हूं । अगले दिन पिता ने बेटे से थैले लाने को कहा । बेटा जब दोनों थैले लाने लगा तो एक थैला आराम से ले आया पर जब दूसरा थैला लाने लगा तो उसे थैला उठाते हुए ही उसे बदबू आने लगी । उसने देखा की सड़े टमाटर वाले थैले के बाकि टमाटर भी सड़ना शुरू हो गए थे । फिर पिता ने उसे प्यार से समझाया और कहा - "जिस तरह एक सड़ा हुआ टमाटर बाकियो को भी सड़ा देता है, ठीक उसी तरह से बुरी संगत भी अच्छे बच्चों को बिगाड़ देती है ।"

जीवन मंत्र - संगत का गहरा असर पड़ता है, इसलिए सदैव अच्छी संगत में रहे |

किसान का जूता


एक बार की बात है, कुछ बच्चे खेतों से हो कर गुजर रहे थे । रस्ते में उन्हें खेतों पर काम कर रहे किसान के जूतें एक पेड़ के नीचे पड़े  मिले । किसान वहां से काफी दूर काम कर रहा था, इसलिए वह बच्चों को अपने जूतों से छेड़ छाड़ करते देख नहीं पाया । मौका देख कर बच्चों को शरारत सूझी । एक बोला इन जूतों में कंकर भर देते है । जब किसान आकर इसे पहनेगा तो उसके पैर में चुभेंगे , और उसे समझ भी नहीं आएगा कि जूतों में कंकर भर कौन गया ? यह देखने में मजा आएगा । सभी दोस्त हाँ में हां मिलाने लगे पर उन्ही में से एक लड़का था राम वह बोला नहीं, इससे उसके पाँव जख्मी हो सकते है । हम एक काम करते है । हम उनके जूतों में कुछ सिक्के डाल देते है । तब देखेंगे की उनके चेहरे पर कैसी खुश आती है ? राम की सलाह पे बाकि के सब बच्चे भी राजी हो गए और सब ने आपस में मिल कर पैसे निकले और जूतों में डाल दिए । राम अपने सभी दोस्तों के साथ एक पेड़ के पीछे जाकर छिप गया । जब किसान आया और जुते पहनने लगा तो उसे कुछ महसूस हुआ । जब उसने देखा की जूतों में पैसे रखे है तो हैरान हो गया । उसने कई बार जोर जोर से आवाजे भी लगाई "अरे भाई ! यह पैसे किसके है?" कोई भी जवाब न आने पैर उसने आसमान की ओर देखा और कहा, शुक्रिया ईश्वर । आपने मेरा इंतजाम कर दिया । अब में अपने बच्चों को आराम से खाना खिला पाउँगा । किसान के चेहरे पर चमक देख कर सभी बच्चे बहुत खुश हुए और राम की सराहना की ।

जीवन मंत्र - मजाक ऐसा करे जिससे किसी को नुक्सान न पहुँचे |

Saturday, 4 February 2017

बच्चे की टॉफियां


एक बार की बात है, एक बच्चा अपनी माँ के साथ खरीदारी करने एक दुकान पर गया तो दुकानदार ने उसका मासूम चेहरा देख कर टॉफियों का डिब्बा खोला और बच्चे के आगे कर के कहा, 'लो, जितनी चाहे टॉफियां ले लो |' लेकिन बचे ने उसे बेहद शालीनता के साथ मना कर दिया । दुकानदार ने दोबारा कहा लेकिन बच्चे ने खुद टॉफियां नहीं ली । बच्चे की माँ ने भी बच्चे से टॉफियां ले लेने को कहा । लेकिन बच्चे ने खुद टॉफियां निकालने के बजाये, दुकानदार के आगे हाथ फैला दिए और कहा, 'आप खुद ही दे दीजिये अंकल |' फिर दुकानदार ने टॉफियां निकालकर उसे दी तो बच्चे ने दोनों जेबों में डाल ली । वापिस आते हुए उनकी माँ ने पूछा, 'जब अंकल तुम्हारे सामने डिब्बा कर रहे थे, तो तुमने टॉफिया नहीं ली, उन्होंने खुद निकालकर दी तो ले ली ? इसका क्या मतलब रहा? बच्चे ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, 'माँ, मेरे हाथ छोटे है, खुद निकलता तो एक या दो ही आती । अंकल के हाथ बड़े थे, उन्होंने निकली, तो देखो कितनी सारी मिल गई|' ठीक इसी तरह हमें उस ईश्वर की मर्जी में खुश रहना चाहिए । यह जो हमें देता है, हमारे लिए एच ही देता है । उसकी ओर से मिल रही सोगातों को सहर्ष स्वीकार करके उसकी रजा में राजी रहना चाहिए, नहीं तो क्या पता किसी दिन हमें पूरा सागर देना चाह रहे हो और हम अज्ञानतावश बस एक चम्मच लिए ही उनके सामने खड़े हों ।

जीवन मंत्र - जीवन में मिल रही चीज़ों को ईश्वर की इच्छा समझ कर स्वीकार करे पर प्रयत्न करना कदापि न छोड़े |

ज्ञान का अहंकार


एक बार की बात है, एक पढ़ा लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ । वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, 'क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है नाविक?' नाविक बोला,  'नहीं ।' दंभी व्यक्ति ने कहा, 'अफसोस है कि तुमने अपनी आधी ज़िन्दगी व्यर्थ ही गंवा दी ।'  थोड़ी देर में उसने फिर से नाविक से पूछा, 'क्या तुमने भूगोल या इतिहास पढ़ा है ?' नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए 'नहीं' में उत्तर दिया । इसपर दंभी व्यक्ति ने कहा, 'फिर तो तुमने अपना सारा ही जीवन व्यर्थ कर दिया ।' मांझी को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वह कुछ नहीं बोला ।  तभी प्राकृतिक परिवर्तनो के चलते वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया । नाविक ने ऊँचे स्वर में दंभी व्यक्ति से पूछा, 'महाराज, आपको तैरना भी आता है या नहीं ?' सवारी ने कहा, 'नहीं, मुझे तैरना नहीं आता है ।' फिर तो आपको अपने इतिहास, व्याकरण और भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा, वार्ना आपकी सारी उम्र बर्बाद हो जाएगी क्योकि यह नाव अब डूबने वाली है । यह कहकर वह नाविक नदी में कूदकर तैरता हुआ आगे बढ़ गया ।

जीवन मंत्र - मनुष्य को कभी भी अपनी विद्या के ज्ञान पर व्यर्थ का अहंकार प्रदर्शित नहीं करना चाहिए | 

Thursday, 2 February 2017

इन्द्रियों की हड़ताल


एक बार की बात है, एक दिन शरीर की इन्द्रियों ने सोचा कि हम लोग मेहनत कर करके मर जाते है और यह पेट हमारी कमाई मुफ्त में ही खा जाता है । अब से हम कमाएंगे तो हम ही खाएंगे, नहीं तो आज के बाद काम करना ही बंद । इस विचार पर सबने सहमति दिखा दी । जब पेट को इस प्रस्ताव का पता चला तो बोला - में तुम्हारी कमाई खुद नहीं रखता हूं, जो कुछ तुम लोग देते हो उसे तुम्हारी शक्ति बढ़ाने के लिए तुम्हारे ही पास वापिस भेज देता हूं । मेरा विश्वास करो तुम्हारी मेहनत तुम्हे ही वापिस मिल जाती है । यह बात इन्द्रियों के समझ नहीं आई और उनकी नाराज़गी बनी रही । आपस में रखे गए प्रस्ताव के अनुसार, सभी इन्द्रियों ने काम करना बंद कर दिया । पेट को भोजन नहीं मिला तो वह भूक से तड़पने लगा । खुद के शिथिल पड़ने पर अब वह दूसरे अंगो को भी ऊर्जा देने में असमर्थ हो गया जिसकी वजह से शरीर के सारे अंगो की शक्ति खत्म होने लगी । शरीर का ऐसा हाल देख कर मस्तिक ने इन्द्रियों से कहा - अरे मूर्खो ! तुम्हारा परिश्रम कोई नहीं खा रहा । वह लौटकर तुम्हे ही मिलता है । यह मत सोचो की दुसरो की सेवा से तुम्हे नुकसान होता है, जो तुम दुसरो को देते हो वो ब्याज समेत तुम्हारे पास वापिस लौटकर आता है । भोजन से मिलने वाली ऊर्जा के आभाव से जूझ रही इन्द्रियों को आपसी सहयोग की वास्तविकता समझ आ गई थी । उन्होंने वापिस एक पल गवाये पहले की तरह काम करना शुरू कर दिया और फिर कभी शिकायत नहीं की ।

जीवन मंत्र - कार्य की सफलता का ताज किसे भी मिले पर वो बिना सामूहिक पुरुषार्थ के संभव नहीं हो सकता । 

Monday, 30 January 2017

ईमानदारी का इनाम


एक बार की बात है, एक राजा के घर कोई संतान नहीं थी । वह अपने उत्तराधिकारी का पद किसी योग्य युवक को ही देना चाहता था । इसलिए राजा ने पुरे शहर में घोषणा करवा दी की राज्य के सभी युवक राजमहल में आएं, राजा उनकी एक परीक्षा लेंगे । जो भी युवक सबसे ज्यादा योग्य पाया जायेगा, उसे राज्य का कार्यभार सँभालने के लिए चुन लिया जायेगा । अगले दिन शहर के बहुत से युवक राजमहल में पहुँच गए । राजा ने उन सभी को एक एक थैली में बीज दिए और कहा की इन बीजों को अपने घर में जाकर बो दो ।  १५ दिन तक इनमे से पौधे निकल आएंगे । तब उन पौधों को लेकर राजमहल आना । उनकी वृद्धि देख कर यह फैसला किया जायेगा की राज्य का उत्तराधिकारी कौन बनेगा । सभी युवक बीज लेकर चले गए और अपने अपने घर में जा कर बीज बो दिए । सभी युवको के बीज में से पौधे निकलने लगे थे पर एक युवक के बीजो में से अंकुर तक न फूटा था । बाकी लोगो के पौधे तेज़ी से बढ़ते देख वो दुःखी हो गया । फिर भी वो आखरी दिन वह अपने उसी गमले को लेकर राजमहल चला गया, जिसमे एक पौधा तो क्या, एक पत्ती तक नहीं थी । राजा ने सबके हरे भरे गमले देखे और उसका खाली गमला भी देखा । और उसी वक़्त राजा ने घोषणा कर दी की राज्य का उत्तराधिकारी वही युवक है जिसका खाली गमला है । दरअसल राजा ने परीक्षा ईमानदारी की ली थी क्योकि बीज सब जले हुए थे जिनसे कभी भी कुछ भी उग ही नहीं सकता था ।

जीवन मंत्र - जीवन में ईमानदारी बरतने से सदैव परिणाम अच्छे ही मिलेंगे और अप्रत्यक्ष लाभ भी । 

Sunday, 29 January 2017

पुरुषार्थ से स्वर्ग प्राप्ति


एक बार की बात है एक साधु नदी के किनारे बैठ कर माला जप रहा था । ऐसा करते देख साधु को एक दूसरा व्यक्ति काफी देर से देख रहा था । काफी समय होने के बाद जब उस से रहा ना गया तो वह साधु के पास पंहुचा और उनसे बोला, 'आप इतनी देर से क्या करे रहे है ?' साधु बोला, 'देखते नहीं ? में कठिन जप कर रहा हूं ।' उस व्यक्ति ने साधु से पूछा 'आपके इस जप से क्या होगा ?' साधु थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले, ' इससे स्वर्ग की प्राप्ति होगी, यही कारण है की में इतनी देर से यहाँ कठिन जप कर रहा हूँ |' यह सुन वह व्यक्ति वही साधु के पास बैठ गया और पास में जमीन पर पड़ी बालू उठा-उठा कर नदी में फेकने लगा । जब साधु ने उसे ऐसा करते देखा तो पूछा, 'तुम यह क्या कर रहे हो ?' वह व्यक्ति बोला, 'में नदी पुल बना रहा हूँ |' साधु बोला - 'वत्स, पुल इस तरह नहीं बना करते । उसके लिए इंजीनियर, श्रमिक, सामान और जरुरी धन जुटाना पड़ता है । उनके समन्वित प्रयासों से पुल तैयार होते है । महज बालू डालने से पुल नहीं बनने वाला ।' साधु की यह बात सुन कर वह व्यक्ति तुरंत पलट कर बोला, 'हे साधु यही तो में कहना चाहता हूँ की सिर्फ मंत्र बोलने या माला जपने से स्वर्ग नहीं मिल सकता । इसके लिए संयम, ज्ञान, पुरुषार्थ जैसे पुण्य भी तो करने होंगे ।' एक आम आदमी से ऐसी महत्वपुर्ण बात सुनकर साधु की आँखे खुल गई । उसने अपनी भूल स्वीकार की और फिर कर्मयोगी बन गया ।

जीवन मंत्र - अपने कर्मो को पूरी ज़िम्मेदारी से करना ही सच्चा जप है |


Saturday, 28 January 2017

सच्ची साधना - कर्तव्य पालन


एक बार की बात है, एक राजा था एकाएक उसकी इच्छा सन्यास लेने की हुई और वो अपना महल छोड़ कर जंगल की ओर चल दिया । काफी दूर तक चलने के बाद उसे एक छोटी सी झोपडी दिखाई दी । यह झोपडी एक किसान की थी । काफी देर चलने की वजह से राजा थक गया था और काफी भूखा भी था । उसने किसान से कुछ खाने के लिए माँगा । किसान ने हांड़ी में खिचड़ी डाल दी और राजा से कहा की अब आप इतना कर दीजिये की चूल्हा जलाकर इसे पका दीजिये । जब यह पक जाये तब मुझे आवाज़ देकर बुला लीजिएगा । हम दोनों इसे खाकर पेट भर लेंगे । राजा ने ऐसा ही किया । जब खिचड़ी पक गई तो राजा ने बाहर काम कर रहे किसान को आवाज़ देकर बुला लिया । दोनों अपनी अपनी थाली में परोसकर खाने लगे । किसान ने राजा से कहा - खिचड़ी रूपी काम भगवान ने दिया है । इसके लिए चूल्हा जलाने और इसे पकाने जैसे पुरुषार्थ का काम हम मनुष्य को करना होता है । आप साधना करना चाहते है न, तो कर्मयोग की साधना करे । अपने कर्तव्यों का पालन करे । अगर आप प्रजा के सुख के लिए काम करेंगे और अपने कर्तव्यों को ठीक ढंग से निर्वाह करेंगे तो इससे आपको परम संतोष मिलेगा । किसान की इन बातों से राजा को गूढ़ तत्वज्ञान समझ आ गया । वह खिचड़ी खाने के बाद चुपचाप अपने राज्य को लौट गया और वहां राज्य के भले में कार्य करने में पुरे मन से जुट गया ।

जीवन मंत्र - मनुष्य के जीवन की सच्ची साधना अपने कर्तव्यों का पालन करना है |

Friday, 27 January 2017

संघर्ष का मूल्य


एक बार की बात है, कॉलेज में एक साथ पढ़ी रिया और सोनम अपने बच्चों के दीक्षांत समारोह पर एक दूसरे से काफी सालों बाद मिली तो दंग रह गई । रिया की हैरानी की वजह यह नहीं थी की सोनम के बेटे ने इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में टॉप किया था, उसे हैरानी तो इस बात की थी की इतने धनी माँ बाप का बेटा होने के बावजूद वह लड़का इतना संघर्षशील कैसे हो गया ? अपने इस दोस्त के बारे में रिया को उसके बेटे ने कई बार बताया था । रिया के बेटे ने उसे बताया था की उसका दोस्त एक काफी संपन्न परिवार से है, लेकिन कभी उसने अपने माँ बाप के रसूख के दम पर फायदा नहीं लिया । वह एक साल ड्रॉप भी कर चूका था, क्योकि वह अपने दम पर एडमिशन लेना चाहता था |  रिया ने ये बातें सोनम से थोड़ी हैरानी के साथ पूछी । तब सोनम बोली - हकीकत में हमारी सम्पति हमारे बेटे को सुविधा देने के लिए ही है, लेकिन यदि हर वक़्त यह सम्पति उसे सुरक्षा या अनुचित लाभ देगी तो यह कभी अपना संघर्ष नहीं कर पायेगा । हम अपने बच्चे की नींव मजबूत करना चाहते हैं   इसलिए हम उसके हिस्से का संघर्ष उससे नहीं छीनते है । आज रिया को संघर्ष शब्द का वास्तविक अर्थ समझ गया था ।

जीवन मंत्र - संघर्ष से अर्जित वस्तु का मोल अनमोल है और उससे मिला ज्ञान आपसे कोई नहीं छीन सकता |

Thursday, 26 January 2017

ईमानदारी - जग प्यारी


एक बार की बात है, एक सेठ शहर के सबसे बड़े जमींदार दौलतराम के पास आये । उनका मकसद दौलतराम से जमीन का एक बड़ा सौदा करना था । रेलगाड़ी से उतरकर उन्होंने रेलवे स्टेशन से दौलतराम जमींदार के घर तक जाने के लिए एक गाड़ी कर ली । गाड़ी वाले ने उन्हें जमीन्दार के घर भी पंहुचा दिया । सेठ ने जब दौलतराम को पैसे देने के लिए अपनी अटेची ढूंढ़ी तो अटेची थी ही नहीं । सेठ के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी । तभी गाड़ी का चालक दरवाजे पर अटेची लेकर आगया । सेठ की जान में जान आई । सेठ ने गाड़ी चालक से पूछा - इसमें लाखो रुपये थे, क्या तुम्हारा मन नहीं डोला ? गाड़ी चालक बोला - नहीं, बेईमानी करने का मौका सबको मिलता है । मैंने इसे नहीं लिया । अगर आज इसे में रख लेता तो सभी गाड़ी वाले बदनाम हो जाते । यह नुकसान काफी बड़ा होता । सेठ को उस चालक की ईमानदारी और बात अंदर तक छू गई |

जीवन मंत्र - ईमानदारी सिर्फ आपकी ही नहीं अपितु आपके द्वारा पुरे समाज की इज़्ज़त बढती है । इसलिए ईमानदारी बरतना आवश्यक है |

हालात - 'एक शिक्षक'


एक बार की बात है, एक कंपनी के नियुक्ति के दौरान दो आवेदको में काटे की टक्कर थी । जब सवाल जवाब का आखरी चरण आया तब उन दोनों से पूछा गया की उनकी परीस्थितियां उन्हें सिखाने में किस तरह मददगार रही है ? एक आवेदक संपन्न परिवार से था और बहुत सी ट्रेनिंग कर के आया था, वही दूसरा गरीब परिवार से था और ज्यादा ट्रेनिंग लेकर भी नहीं आया था । संपन्न आवेदक ने कहा - मेरे पास अच्छा पैसा है । मैंने उससे ट्रेनिंग की । इस तरह मेरी परीस्थितियां मददगार रही है । वह हास्यप्रद नजर से दूसरे आवेदक को देखने लगा । तब दूसरा आवेदक बोला - मेरे पास ये चीज़े नहीं थी । लेकिन इन्होंने मुझमें निराशा नहीं प्रोहत्साहन पैदा किया की मुझे इस आभाव को दूर करना है । मेरे हालात इस तरह मददगार रहे ।

जीवन मंत्र - हालात और परिस्थितियां बड़े शिक्षक है । मनुष्य को सब सीखा देती है |

अनुभव से आता आत्मविश्वास



एक बार की बात है एक शहर में एक मोची रहता था | वह टूटे जूते चप्पलों को तो मजबूती से जोड़ता ही था साथ ही नये जूते भी कमाल के बनाता था | नए जूतो की मजबूती और डिजाईन के कारण वो प्रसिद्ध होने लगा । एक बार एक बहुत आमिर आदमी का जूता रास्ते में टूट गया तो वह भी इसी मोची के पास आया । जूता ठीक हो जाने पे आमिर आदमी ने मोची से कहा तुम मेरे लिए एक जोड़ी नए जूते बनाओ । वह ऐसे हो की तुम्हारा बनाया हुआ कोई भी जूता कभी इससे अच्छा ना हो ।  मोची ने साफ़ मना कर दिया ।  जब आमिर आदमी ने मुँह माँगा दाम देने की बात कही तो भी मोची ना माना ।  जब उसने मोची से इनकार करने की वजह पूछी तो मोची ने कहा - "में अब तक का सर्वश्रेस्ठ जूता बना सकता हूँ, लेकिन मेरे हुनर में अनुभव के साथ निखार आता जायेगा । में ये नहीं कह सकता की इससे बढ़िया जूता कभी नहीं बन सकता । इसलिए जो बात आप कह रहे है वो में पूरी नहीं कर सकता |"
एक संतुष्टि भरी मुस्कराहट के साथ अमीर आदमी वहां से फिर चल दिया |

जीवन मंत्र - काम के अनुभव के साथ साथ उसमे निखार आता जाता है । इसलिए हमें निरंतर कार्य करते रहना चाहिये |

खुद पर विश्वास


एक बार की बात है, दो दोस्त थे, उन्होंने अपने जीवन में भारी गरीबी देखने के बाद प्रगति का सफर लगभग एक साथ ही शुरू किया । धीरे धीरे दोनों ने अपने कारोबार शुरू किये और देखते ही देखते अपार सम्पति के मालिक भी बन गए । दोनों में से एक दोस्त तो नए नए तरीको से कारोबार को विस्तार देने में जुटा रहकर हमेशा प्रसन्न रहता था, वही दूसरा दोस्त ना जाने किस चिंता में डूबा रहता था । एक दिन जब दोनों किसी अवसर पर मिले तो पहले दोस्त ने दूसरे दोस्त की चिंता का कारण पूछा । तब वह बोला - दोस्त बचपन में इतनी गरीबी देख ली की अब डर लगा रहता है की कही वापिस गरीब ना हो जाऊ । तो पहले दोस्त ने कहा - में इसी को अपनी ताकत मानता हूँ । में यही सोचता हूँ की गरीबी तो देख चूका, वापिस आ भी गई तो कुछ नया नहीं होगा मेरे लिए । ऐसी भावना से में दुगनी मेहनत और लगन से काम कर पता हूँ । दूसरे दोस्त को अपने दोस्त की बात में वजन नजर आगया । फिर वह भी एक नई सोच और पुरे आत्मविश्वास के साथ अपने कारोबार को और विस्तार करने में जुट गया और अब उसकी चिंता भी पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी थी |

जीवन मंत्र - अपने आप पर विश्वास रखे । खुद पर से यकीन कम ना होने दे |

Wednesday, 25 January 2017

सेब और बेटी


एक बार की बात है, एक आदमी अपनी बेटी के साथ शाम को घूम रहा था | तभी वहां एक सेब बेचने वाला आया |  बेटी ने अपने पिता को सेब दिलाने को बोला तो पिता ने बेटी को दो सेब दिला दिए | बेटी ने अपने दोनों हाथों में एक एक सेब ले लिया | फिर पिता ने अपनी बेटी से पूछा कि क्या वह उसके साथ एक सेब बाँट सकती है ? यह सुनते ही बेटी ने सेब का एक टुकड़ा खा लिया । इससे पहले की पिता कुछ बोलते, बेटी ने दूसरे सेब का टुकड़ा भी खा लिया | यह देख पिता को बहुत दुःख हुआ और वह सोचने लगा की शायद उसने अपनी बेटी को गलत संस्कार दिए है तभी वह इतना लालच दिखा रही है | वह यह सोच ही रहा था की तभी बेटी ने उसकी तरफ एक सेब बढ़ाते हुए कहा की पापा, आप यह सेब खाओ, यह ज्यादा मीठा और रसीला है |  यह सुनते ही पिता से कुछ कहते नहीं बना । उसे बुरा लगा की उसने बिना सोचे समझे अपनी बेटी के बारे में गलत राय बना ली | हालाँकि वह अपनी बेटी का अपने प्रति इतना प्यार देख कर भीतर से खुश भी था |

मंत्र - बिना सोचे समझे कभी भी जल्दबाजी में आकर किसी भी नतीजे पर न पहुँचे ।