एक बार की बात है गाँधी जी को किसी काम के लिए नीम के पत्तों की जरुरत पड़ी | उन्होंने अपने आश्रम में एक युवक से कहा कि बाहर जाओ और दो पत्ती नीम तोड़ के ले आओ | वह युवक गया और आश्रम में लगे पेड़ से नीम की एक टहनी तोड़कर ले आया | उसने नीम के टहनी लाकर गांधीजी को दे दी | गांधीजी ने जब नीम के टहनी देखी तो वे दुखी हो गए | गाँधी जी बोले - अब मै इस नीम का इस्तेमाल नहीं कर पाउँगा | युवक को कुछ समझ नहीं आया | वह आश्चर्य से गांधीजी की ओर देखने लगा | गांधीजी बोले - मुझे खुद जाकर नीम लानी चाहिए थी | युवक से रहा ना गया और उसने गांधीजी से दुखी होने का कारण पूछा तो गांधीजी बोले - मैने तुमसे दो पत्ती नीम की मांगी थी | तुम पूरी टहनी ले आए हो | इससे शेष पत्तियां बेकार हो गई है | मुझे इसी बात का दुःख है | युवक के मन में अभी भी संशय कायम था | गांधीजी ने उसे कहा - हमें उतनी ही वास्तु लेनी चाहिए, जिसका उचित उपभोग हम कर सके | बेवजह ज्यादा वस्तुएं ले लेने से या संग्रह करके रख लेने का तरीका गलत है | इससे प्रकृति को भी नुकसान पहुँचता है, जैसा कि अभी हुआ है | युवक अब मूल बात समझ गया था कि गाँधी जी को प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी से दुःख पंहुचा है | इससे युवक ने भविष्य में सावधानी बरतने का निश्चय किया |
जीवन मंत्र - हमें बेवजह चीज़ की बर्बादी नहीं करनी चाहिए, उतना ही ले जितनी आवश्यकता हो |
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