एक बार की बात है, एक दिन शरीर की इन्द्रियों ने सोचा कि हम लोग मेहनत कर करके मर जाते है और यह पेट हमारी कमाई मुफ्त में ही खा जाता है । अब से हम कमाएंगे तो हम ही खाएंगे, नहीं तो आज के बाद काम करना ही बंद । इस विचार पर सबने सहमति दिखा दी । जब पेट को इस प्रस्ताव का पता चला तो बोला - में तुम्हारी कमाई खुद नहीं रखता हूं, जो कुछ तुम लोग देते हो उसे तुम्हारी शक्ति बढ़ाने के लिए तुम्हारे ही पास वापिस भेज देता हूं । मेरा विश्वास करो तुम्हारी मेहनत तुम्हे ही वापिस मिल जाती है । यह बात इन्द्रियों के समझ नहीं आई और उनकी नाराज़गी बनी रही । आपस में रखे गए प्रस्ताव के अनुसार, सभी इन्द्रियों ने काम करना बंद कर दिया । पेट को भोजन नहीं मिला तो वह भूक से तड़पने लगा । खुद के शिथिल पड़ने पर अब वह दूसरे अंगो को भी ऊर्जा देने में असमर्थ हो गया जिसकी वजह से शरीर के सारे अंगो की शक्ति खत्म होने लगी । शरीर का ऐसा हाल देख कर मस्तिक ने इन्द्रियों से कहा - अरे मूर्खो ! तुम्हारा परिश्रम कोई नहीं खा रहा । वह लौटकर तुम्हे ही मिलता है । यह मत सोचो की दुसरो की सेवा से तुम्हे नुकसान होता है, जो तुम दुसरो को देते हो वो ब्याज समेत तुम्हारे पास वापिस लौटकर आता है । भोजन से मिलने वाली ऊर्जा के आभाव से जूझ रही इन्द्रियों को आपसी सहयोग की वास्तविकता समझ आ गई थी । उन्होंने वापिस एक पल गवाये पहले की तरह काम करना शुरू कर दिया और फिर कभी शिकायत नहीं की ।
जीवन मंत्र - कार्य की सफलता का ताज किसे भी मिले पर वो बिना सामूहिक पुरुषार्थ के संभव नहीं हो सकता ।
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