एक बार की बात है, एक बच्चा अपनी माँ के साथ खरीदारी करने एक दुकान पर गया तो दुकानदार ने उसका मासूम चेहरा देख कर टॉफियों का डिब्बा खोला और बच्चे के आगे कर के कहा, 'लो, जितनी चाहे टॉफियां ले लो |' लेकिन बचे ने उसे बेहद शालीनता के साथ मना कर दिया । दुकानदार ने दोबारा कहा लेकिन बच्चे ने खुद टॉफियां नहीं ली । बच्चे की माँ ने भी बच्चे से टॉफियां ले लेने को कहा । लेकिन बच्चे ने खुद टॉफियां निकालने के बजाये, दुकानदार के आगे हाथ फैला दिए और कहा, 'आप खुद ही दे दीजिये अंकल |' फिर दुकानदार ने टॉफियां निकालकर उसे दी तो बच्चे ने दोनों जेबों में डाल ली । वापिस आते हुए उनकी माँ ने पूछा, 'जब अंकल तुम्हारे सामने डिब्बा कर रहे थे, तो तुमने टॉफिया नहीं ली, उन्होंने खुद निकालकर दी तो ले ली ? इसका क्या मतलब रहा? बच्चे ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, 'माँ, मेरे हाथ छोटे है, खुद निकलता तो एक या दो ही आती । अंकल के हाथ बड़े थे, उन्होंने निकली, तो देखो कितनी सारी मिल गई|' ठीक इसी तरह हमें उस ईश्वर की मर्जी में खुश रहना चाहिए । यह जो हमें देता है, हमारे लिए एच ही देता है । उसकी ओर से मिल रही सोगातों को सहर्ष स्वीकार करके उसकी रजा में राजी रहना चाहिए, नहीं तो क्या पता किसी दिन हमें पूरा सागर देना चाह रहे हो और हम अज्ञानतावश बस एक चम्मच लिए ही उनके सामने खड़े हों ।
जीवन मंत्र - जीवन में मिल रही चीज़ों को ईश्वर की इच्छा समझ कर स्वीकार करे पर प्रयत्न करना कदापि न छोड़े |
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