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Saturday, 25 March 2017

आत्मग्लानि - अच्छाई की निशानी


एक बार की बात है एक थे बाबा भारती और एक उनका घोड़ा था जिसका नाम धनु था ।  धनु ऐसा फुर्तीला था की हवा से बातें करता । बाबा उसका खयाल अपने से भी ज्यादा रखते थे । एक बार एक डाकू उनके पास आया । धनु की फुर्ती देख कर वह उस पर मोहित हो गया । बाबा से कहने लगा की यह घोडा मुझे दे दो । बाबा ने मन किया तो जाते जाते बोला कि घोड़ा तो में लेकर ही रहूँगा बाबा । अब क्या था बाबा न सो पाएं, न खा पाएं । रात में उठ उठ कर धनु को देखने अस्तबल जाते । उनके मन में के दर बैठ गया एक दिन धनु पर सवार होकर बाबा भारती जंगल से गुजर रहे थे तो एक अपाहिज मिला । वह बोला कि बाबा, कृपा होगी अगर आप मुझे पास के गॉव में छोड़ दे तो, में चलने में असमर्थ हूं । बाबा ने हाथ देकर उसे अपने साथ बैठा लिया । कुछ ही दूर गए थे कि अपाहिज ने बाबा को धक्का देकर घोड़े से गिरा दिया और जाते जाते बोला कि घोडा तो मेने ले लिया बाबा भर्ती । बाबा ने पीछे से आवाज़ देकर कहा कि ले लो, लेकिन एक बात सुनते जाओ । वह लौटकर आया तो तो बाबा ने कहा कि इस बारे में किसी और को न कहना, नहीं तो कोई लाचारों की बात पर यकीं नहीं करेगा । डाकू उस समय तो घोडा ले गया लेकिन कुछ ही दिन में वह इतनी आत्मग्लानि से भर गया कि वह घोडा खुद अस्तबल में छोड़ कर चला गया ।

जीवन मंत्र - अच्छाई से बुरी सोच को भी बदला जा सकता है । 

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