एक बार की बात है महात्मा बुद्ध किसी गॉव के बाहर पेड़ के नीचे ध्यानमग्न होकर बैठे थे | गॉव से बड़ी मात्रा में लोग एकत्र होकर उनके दर्शन के लिए जा रहे थे | उसी गॉव में एक व्यक्ति था लोकेश जो गॉव वालों की इस बात पर हरगिज़ यकीन नहीं करता था कि बुद्ध हमेशा शांत रहते है और दूसरों के मन को भी शीतलता प्रदान करते है | एक दिन लोकेश ने सोचा कि क्यों ना खुद चल कर बुद्ध की परीक्षा ली जाये और वह कुछ योजना बना कर उनसे मिलने गॉव के बाहर चला गया | वहां पंहुचा तो देखा कि बुद्ध अपनी आँखे बंद कर शांत मुद्रा में ध्यान लगाकर बैठे हुए है | उनके चेहरे पर अलौकिक तेज का संचार हो रहा था | लोकेश बुद्ध के समीप गया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा | बुद्ध ने आँखे तो खोल ली लेकिन बिलकुल धैर्य के साथ चिल्लाते हुए लोकेश को देखते रहे | जब लोकेश बोलते बोलते थक गया तब महात्मा बोले आप आराम से बैठिये, थोड़ा सांस ले लीजिये | लोकेश को बड़ी हैरानी हुई | वह महात्मा से बोलै - मैंने आपको इतना बुरा-भला कहा, और आप मुझ से जरा भी नाराज़ नहीं हुए, बल्कि मुझे आराम करने के लिए कह रहे है | तब महात्मा बुद्ध थोड़ा मुस्कुराये और बोले - "देखो, तुमने जो बुरे वचन कहे, वो मैने लिए ही नहीं| इसलिए वह तुम्हारे पास ही रह गए |" बुद्ध की धैर्येपूर्ण बात सुनकर लोकेश शर्मसार हो गया |
जीवन मंत्र - कदापि अपने मन का धैर्य ना खोएं, यही आपकी ताकत है और समस्या का समाधान भी |
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