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Tuesday, 29 August 2017

धैर्य कि परीक्षा

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एक बार की बात है महात्मा बुद्ध किसी गॉव के बाहर पेड़ के नीचे ध्यानमग्न होकर बैठे थे | गॉव से बड़ी मात्रा में लोग एकत्र होकर उनके दर्शन के लिए जा रहे थे | उसी गॉव में एक व्यक्ति था लोकेश जो गॉव वालों की इस बात पर हरगिज़ यकीन नहीं करता था कि बुद्ध हमेशा शांत रहते है और दूसरों के मन को भी शीतलता प्रदान करते है | एक दिन लोकेश ने सोचा कि क्यों ना खुद चल कर बुद्ध की परीक्षा ली जाये और वह कुछ योजना बना कर उनसे मिलने गॉव के बाहर चला गया | वहां पंहुचा तो देखा कि बुद्ध अपनी आँखे बंद कर शांत मुद्रा में ध्यान लगाकर बैठे हुए है |  उनके चेहरे पर अलौकिक तेज का संचार हो रहा था | लोकेश बुद्ध के समीप गया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा | बुद्ध ने आँखे तो खोल ली लेकिन बिलकुल धैर्य के साथ चिल्लाते हुए लोकेश को देखते रहे | जब लोकेश बोलते बोलते थक गया तब महात्मा बोले आप आराम से बैठिये, थोड़ा सांस ले लीजिये | लोकेश को बड़ी हैरानी हुई | वह महात्मा से बोलै - मैंने आपको इतना बुरा-भला कहा, और आप मुझ से जरा भी नाराज़ नहीं हुए, बल्कि मुझे आराम करने के लिए कह रहे है | तब महात्मा बुद्ध थोड़ा मुस्कुराये और बोले - "देखो, तुमने जो बुरे वचन कहे, वो मैने लिए ही नहीं| इसलिए वह तुम्हारे पास ही रह गए |" बुद्ध की धैर्येपूर्ण बात सुनकर लोकेश शर्मसार हो गया |


जीवन मंत्र - कदापि अपने मन का धैर्य ना खोएं, यही आपकी ताकत है और समस्या का समाधान भी |

Tuesday, 20 June 2017

रूप बड़ा की गुण


एक बार की बात है, एक राजा के चार पुत्र थे | इनमे से तीन राजकुमार तो बेहद सूंदर थे लेकिन चौथा उतना ही कुरूप था | तीनो सूंदर राजकुमार रूपवान तो बहुत थे, लेकिन गुणों के मामले में बिल्कुल शून्य | वही चौथा राजकुमार बेहद गुणी था | तीनो राजकुमार और राजा खुद भी बात-बात पर चौथे राजकुमार का अपमान करते रहते | उसे इस व्यव्हार से दुःख पहुँचता था लेकिन वह कुछ कह नहीं पता था | लेकिन एक बार वह निश्चय करके राजा के पास पंहुचा और बोला - पिताजी क्या गुण का कोई मोल नहीं? क्या रूप ही सब कुछ होता है? राजा ने अपने ही पुत्र पर व्यंग करते हुआ कहा - जिसमे रूप ही नहीं, उसमे भला गुण कहा से आएगा? इसके बाद वह राजकुमार राज्य छोड़कर वन में चला गया | कई वर्ष बीत गए | एक दिन वह धनुष-बाण का अभ्यास कर रहा था तो उसने तीन लोगो को देखा जो फटे कपड़ो में थे और जमीन से उठा कर फल खा रहे थे | वह इस तीनो राजकुमारों को देख कर बोला - मेरे भाइयों, यह सब क्या हुआ? तब उन्होंने बताया की छोटे भाई तुम्हारे राज्य छोड़ कर चले जाने के बाद पडोसी राजा ने हमला बोल दिया था | हम तीनो राजकुमार भाग निकले और राजा को भी मार दिया | क्योकि तीनो के पास कोई गुण नहीं था दाने दाने के लिए तरसने लगे| तीनो भाई बोले - तुम हमें माफ़ कर दो | चौथे राजकुमार ने अपनी सेना लेकर शत्रु राजा पर हमला बोल दिया और राज्य वापस लिया | अब इसी भाई की सूझ बुझ से राज्य चलाया जाने लगा |

जीवन मंत्र - रूप से कई ज्यादा महत्व व्यक्ति के गुणों का होता है | गुणी व्यक्ति सदैव स्वाभिमान से जीता है |

Sunday, 18 June 2017

जीवन में प्राथमिकताएं बनाये


एक बार की बात है, गुरूजी कक्षा में आये और छात्रों से बोले - आज तुम्हे जीवन का एक अहम पाठ पढ़ाना है | फिर गुरूजी ने एक कांच का जार मेज पैर रखा और थैले से निकलकर टेनिस की गेंदे उसमे डाल दी | फिर छात्रों से पूछा - जार भर गया क्या? छात्र बोले - हां गुरूजी, भर गया | अब गुरूजी ने थैले में से कंकड़ निकले और जार में डाल दिए | कंकड़ जार की खली बची जगहों में बैठ गए तो फिर से मास्टर जी ने पूछा - अभ भर गया ना जार ? छात्रों ने फिर कहा - हाँ, अब तो पक्का भर गया गुरूजी | अब उन्होंने रेत निकली और उसे धीरे धीरे जार में डालना शुरू किया | रेत ने भी अपनी जगह बना ली | फिर गुरूजी का वही सवाल था और छात्रों का भी वही जवाब रहा | अब गुरूजी ने अपना चाय का भरा हुआ कब इस जार में उड़ेल दिया | रेत ने साड़ी चाय को सोख लिया | छात्रों को खुश समझ नहीं आया तो गुरूजी बोले - कांच के इस जार को तुम अपना जीवन समझो, गेंदे इसका सबसे अहम भाग यानी भगवान, परिवार, स्वास्थ, मित्र और बच्चे है | कंकड़ तुम्हारी नौकरी, मकान, गाडी है | रेत का मतलब छोटी मोटी बेकार की बातें और झगडे है | पहले रेत भर देते तो गेंद के लिए जगह नहीं रहती | इसलिए प्राथमिकताएं तय करे | एक ने पूछ लिया - फिर ये चाय क्या थी गुरूजी? गुरूजी मुस्कुराते हुए बोले - जीवन चाहें कितना भी परिपूर्ण लगे, दोस्तों के साथ चाय पीने की जगह हमेशा रहे |

जीवन मंत्र - जीवन अनमोल और कीमती है इसलिए प्राथमिकता बनाये तथा व्यर्थ की बातों में इसे ना गंवा दे | सम्पूर्णता से जिएं |

Wednesday, 31 May 2017

भावना का महत्त्व


एक बार की बात है गौतमबुद्ध पाटलिपुत्र पहुंचे तो वहां का हर व्यक्ति उन्हें उपहार देने लगा | राजा ने भी उन्हें बेहद कीमती हीरे मोती के उपहार दिए |  बुद्ध ने इन्हे एक हाथ से स्वीकार किया | इसके बाद मंत्रियों, साहूकारों, सेठों ने भी कीमती उपहार दिए | बुद्ध ने उन्हें भी एक हाथ से स्वीकार किया | इतने में एक बूढ़ी महिला वहां आई | बुद्ध से मिलकर वह बोली - प्रभु, जब आपकी आने का समाचार मिला, तो में अनार खा रही थी | मेरे पास और कुछ तो नहीं है , लेकिन अपना आधा खाया हुआ अनार आपके लिए ले आई हूँ| उम्मीद है, आप मेरी इस छोटी सी भेट को स्वीकार कर लेंगे | बुद्ध ने दोनों हाथों से वह आधा अनार स्वीकार कर लिया | यह देख राजा ने बुद्ध से कहा - महाराज एक प्रश्न है | बुद्घ ने जब पूछने को कहा तो राजा ने कहा - हमारे कीमती उपहार आपने एक हाथ से लिए जबकि उस महिला के जूठे फल के लिए दोनों हाथ फैला दिए | ऐसा क्यों ? बुद्ध बोले - आपके डिम्ति उपहार आपकी संपत्ति का छोटा सा हिस्सा है | जबकि इस बुजुर्ग महिला ने मुझे अपने मुँह का निवाला ही दे दिया | इसकी भैंट कहीं महान है | इसलिए मैने दोनों हाथों से लिया |

जीवन मंत्र - उपहार से कहीं ज्यादा महत्व इसके पीछे छिपी भावना का है | 

Tuesday, 30 May 2017

ना हो बर्बादी



एक बार की बात है गाँधी जी को किसी काम के लिए नीम के पत्तों की जरुरत पड़ी | उन्होंने अपने आश्रम में एक युवक से कहा कि बाहर जाओ और दो पत्ती नीम तोड़ के ले आओ | वह युवक गया और आश्रम में लगे पेड़ से नीम की एक टहनी तोड़कर ले आया | उसने नीम के टहनी लाकर गांधीजी को दे दी | गांधीजी ने जब नीम के टहनी देखी तो वे दुखी हो गए | गाँधी जी बोले - अब मै इस नीम का इस्तेमाल नहीं कर पाउँगा | युवक को कुछ समझ नहीं आया | वह आश्चर्य से गांधीजी की ओर देखने लगा | गांधीजी बोले - मुझे खुद जाकर नीम लानी चाहिए थी | युवक से रहा ना गया और उसने गांधीजी से दुखी होने का कारण पूछा तो गांधीजी बोले - मैने तुमसे दो पत्ती नीम की मांगी थी | तुम पूरी टहनी ले आए हो | इससे शेष पत्तियां बेकार हो गई है | मुझे इसी बात का दुःख है | युवक के मन में अभी भी संशय कायम था | गांधीजी ने उसे कहा - हमें उतनी ही वास्तु लेनी चाहिए, जिसका उचित उपभोग हम कर सके | बेवजह ज्यादा वस्तुएं ले लेने से या संग्रह करके रख लेने का तरीका गलत है | इससे प्रकृति को भी नुकसान पहुँचता है, जैसा कि अभी हुआ है | युवक अब मूल बात समझ गया था कि गाँधी जी को प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी से दुःख पंहुचा है | इससे युवक ने भविष्य में सावधानी बरतने का निश्चय किया |

जीवन मंत्र - हमें बेवजह चीज़ की बर्बादी नहीं करनी चाहिए, उतना ही ले जितनी आवश्यकता हो |

Sunday, 7 May 2017

भगवान की गोद


एक बार की बात है, एक आदमी भगवान का बड़ा भक्त था | बड़े प्रेम भाव के साथ उनकी भक्ति किया करता था |  एक दिन भगवान से कहने लगा - में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ, पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई | में चाहता हूँ कि आप भले ही साक्षात् दर्शन न दे, परन्तु कुछ ऐसा करे कि मुझे आपके साथ होने का अनुभव तो हो | भगवान ने कहा ठीक है | तुम रोज सुबहे समुंद्र किनारे सैर पर जाते हो न | कल से रोज रेत पर तुम्हे तुम्हारे पैरों के अलावा दो पैरों के निशान और मिलेंगे | वे निशान मेरे होंगे | इस तरह तुम्हे रोज मेरी अनुभूति होगी | अब वह जब भी  सैर पर जाता तो अपने पैरों के निशान के साथ दो और पैरों के निशान देख बहुत खुश होता | एक बार उसे व्यापार में बहुत घाटा हुआ, भारी नुकसान की वजह से सब कुछ बिक गया और वह सड़क पर आ गया | उसके सभी परिचित ने उससे मुँह मोड़ लिया | कंगाल हो जाने के बाद जब वह सैर करने गया तो उसे रेत पर भी सिर्फ दो ही पैरों के निशान दिखे | उसे बहुत दुःख हुआ कि भगवान ने भी उसका साथ छोड़ दिया | धीरे धीरे उसकी आर्थिक हालत सुधरी तो लोग तो लौटे, साथ ही रेत पर दो निशान भी लौट आये | अब वह भगवन से नाराज होकर बोला - आपने भी मुसीबत में साथ छोड़ दिया था ? रेत पर सिर्फ दो निशान होते थे | तब भगवान बोले - में ऐसा कैसे कर सकता हूँ ? तब तुम इतना टूट गए थे कि चलने लायक भी नहीं थे | मैंने तुम्हे अपनी गोद में ले लिया था | वे निशान मेरे ही पैरों के थे | अब तुम फिर समर्थ हो तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है |

जीवन मंत्र - खुद को कभी अकेला न समझे, फिर मुसीबत से उबरने की हिम्मत आ जाएगी |

Sunday, 26 March 2017

सन्देश समानता का


एक बार की बात है, स्वामी रामानुजाचार्य शरीर से काफी कमजोर थे । वह रोजाना गंगा स्नान के बाद ही कोई काम करते थे । घाट की सीढ़ियां बहुत ऊँची थी इसलिए उन्हें चढ़ने और उतरने में काफी दिक्कत होती थी । वह जाते समय एक ब्राह्मण की मदद लेते और लौटते समय एक निम्न जाति के एक व्यक्ति के कंधे पर हाथ रख कर ऊपर आते ।  उनके इस व्यवहार को साधु संत उचित नहीं मानते थे । लेकिन संकोचवश उनसे कुछ कह नहीं पाते थे । एक बार एक शिष्य से रहा नहीं गया और उसने कह ही दिया, "स्वामीजी, आपके स्नान का क्या लाभ ? आप स्नान से पहले तो ब्राह्मण की मदद लेते है लेकिन शुद्ध होकर लौटते समय आप निम्न  जाति के आदमी के कंधो का सहारा लेते है । इससे तो आप स्नान के बाद भी अपवित्र रहते है ।" स्वामी से मुस्कुराते हुए बोले, 'यह तुम्हारे मन का भ्रम है बेटा । नहाने में केवल मेरे ऊपरी शरीर का मैल धुलता है । शरीर के अंदर का मैल तो वैसे का वैसा ही रहता है । यह तो उस व्यक्ति के साथ आने पर ही धुलता है, जिसे तुम नीची जाति का कहते हो । उसे गले लगा कर में समानता का सन्देश देता हूँ । इससे मेरा मन शुद्ध हो जाता है |'  स्वामी जी के मुख से ऐसे शब्द सुनकर वह शिष्य आगे कुछ बोल ही ना सका ।

जीवन मंत्र - भेद भाव रखना गलत है तथा तन और मन दोनों को शुद्ध रखे |

Saturday, 25 March 2017

चार मोमबत्तियां


एक बार की बात है, 4 मोमबत्तिया अँधेरे में जल रही थी । अचानक ही वे एक दूसरे से अपने दिल की बात करने लगे । पहली  मोमबती बोली, "में शांति हूँ । लेकिन हर तरफ मची भागदौड़ और आपाधापी को देख कर लगता है कि किसी को मेरी जरुरत ही नहीं है । में यहाँ और नहीं रह सकती ।" यह कहते ही वह बुझ गई । दूसरी मोमबत्ती बोली - "में विश्वास हूं लेकिन हर ओर  फैले झूठ-फरेब को देख कर लगता है कि मेरी किसी को जरुरत नहीं है । में भी यहाँ नहीं रहना चाहती |" यह कह कर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई । अब तीसरी मोमबत्ती भी बड़े दुःख के साथ बोली - " में प्रेम हूँ । में हमेशा जलती रह सकती हूँ लेकिन मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं रह गया । मेरे यहाँ रहने का कोई तात्पर्य नहीं ।" और ये कह कर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई । तभी एक छोटा बच्चा कमरे में आया तो रुँआसा हो कर बोला - "तुम तीनो मोमबत्तियां बुझ क्यों गई ?" तब चौथी मोमबत्ती बोली, "रोओ मत बच्चे, में आशा हूँ| में जल रही हूं । जब तक में हूँ तब तक हम दूसरी मोमबत्तियों को दुबारा जला सकते है |" बच्चे की आँखों में चमक आ गई और उसने आशा से प्रेम, विश्वास  और शांति को फिर से जला दिया ।

जीवन मंत्र - अगर आप आशावान है तो जीवन में सब संभव है । 

आत्मग्लानि - अच्छाई की निशानी


एक बार की बात है एक थे बाबा भारती और एक उनका घोड़ा था जिसका नाम धनु था ।  धनु ऐसा फुर्तीला था की हवा से बातें करता । बाबा उसका खयाल अपने से भी ज्यादा रखते थे । एक बार एक डाकू उनके पास आया । धनु की फुर्ती देख कर वह उस पर मोहित हो गया । बाबा से कहने लगा की यह घोडा मुझे दे दो । बाबा ने मन किया तो जाते जाते बोला कि घोड़ा तो में लेकर ही रहूँगा बाबा । अब क्या था बाबा न सो पाएं, न खा पाएं । रात में उठ उठ कर धनु को देखने अस्तबल जाते । उनके मन में के दर बैठ गया एक दिन धनु पर सवार होकर बाबा भारती जंगल से गुजर रहे थे तो एक अपाहिज मिला । वह बोला कि बाबा, कृपा होगी अगर आप मुझे पास के गॉव में छोड़ दे तो, में चलने में असमर्थ हूं । बाबा ने हाथ देकर उसे अपने साथ बैठा लिया । कुछ ही दूर गए थे कि अपाहिज ने बाबा को धक्का देकर घोड़े से गिरा दिया और जाते जाते बोला कि घोडा तो मेने ले लिया बाबा भर्ती । बाबा ने पीछे से आवाज़ देकर कहा कि ले लो, लेकिन एक बात सुनते जाओ । वह लौटकर आया तो तो बाबा ने कहा कि इस बारे में किसी और को न कहना, नहीं तो कोई लाचारों की बात पर यकीं नहीं करेगा । डाकू उस समय तो घोडा ले गया लेकिन कुछ ही दिन में वह इतनी आत्मग्लानि से भर गया कि वह घोडा खुद अस्तबल में छोड़ कर चला गया ।

जीवन मंत्र - अच्छाई से बुरी सोच को भी बदला जा सकता है । 

Sunday, 12 March 2017

पछतावा मजाक का


एक बार की बात है, एक लड़की थी प्रिया जो गॉव से शहर पड़ने आई थी और एक अच्छे स्कूल में दाखिल भी हो गई । स्कूल के बच्चे प्रिया से ज्यादा बात नहीं किया करते थे । एक बार जब क्लास में टीचर आई  तो सब उनका अभिवादन करते हुए उठ गए तब प्रिया के मुंह से 'गुड मॉर्निंग' की जगह 'गुड मोरिंग' बोला तो सब बच्चों ने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया । अब तो वो कुछ भी बोले, एक ख़ास समूह उसकी देसी लहजे का मजाक बनाने लग जाता । इस समूह की सबसे चर्चित लड़की थी करिश्मा । उसने घर जा कर प्रिया की नक़ल उतारकर मजाक बनाया तो उसकी माँ ने उसे ऐसा करे से मना किया । लेकिन करिश्मा नहीं मानी और समय बीतता गया । अब क्लास में मैडम या सर कोई भी सवाल पूछते तो एक हाथ हमेशा उठता था और वो थी प्रिया । धीरे धीरे बच्चे उससे दोस्ती करने लग गए पर करिश्मा का समूह अलग ही था । एक दिन करिश्मा बहुत बीमार पड़ गई । कई दिनों तक स्कूल नहीं आई तो स्कूल से अगर सबसे पहले उससे मिलने कोई पंहुचा तो वह प्रिया थी । करिश्मा को अपने किये पर पछतावा हुआ । प्रिया ने उससे कहा की वह आराम करे और स्कूल के काम में वह उसकी मदद कर देगी । करिश्मा को अब अपने किये पर बहुत पछतावा होने लगा । उसने प्रिया से माफ़ी मांगी और कहा की वह भी अंग्रेजी सुधारने में उसकी मदद करेगी । तब से वह दोनों अच्छी सहेलिया बन गई ।

जीवन मंत्र - किसी का व्यर्थ ही मजाक न बनाये, वह आपसे कही काबिल हो सकता है ।