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Wednesday, 31 May 2017

भावना का महत्त्व


एक बार की बात है गौतमबुद्ध पाटलिपुत्र पहुंचे तो वहां का हर व्यक्ति उन्हें उपहार देने लगा | राजा ने भी उन्हें बेहद कीमती हीरे मोती के उपहार दिए |  बुद्ध ने इन्हे एक हाथ से स्वीकार किया | इसके बाद मंत्रियों, साहूकारों, सेठों ने भी कीमती उपहार दिए | बुद्ध ने उन्हें भी एक हाथ से स्वीकार किया | इतने में एक बूढ़ी महिला वहां आई | बुद्ध से मिलकर वह बोली - प्रभु, जब आपकी आने का समाचार मिला, तो में अनार खा रही थी | मेरे पास और कुछ तो नहीं है , लेकिन अपना आधा खाया हुआ अनार आपके लिए ले आई हूँ| उम्मीद है, आप मेरी इस छोटी सी भेट को स्वीकार कर लेंगे | बुद्ध ने दोनों हाथों से वह आधा अनार स्वीकार कर लिया | यह देख राजा ने बुद्ध से कहा - महाराज एक प्रश्न है | बुद्घ ने जब पूछने को कहा तो राजा ने कहा - हमारे कीमती उपहार आपने एक हाथ से लिए जबकि उस महिला के जूठे फल के लिए दोनों हाथ फैला दिए | ऐसा क्यों ? बुद्ध बोले - आपके डिम्ति उपहार आपकी संपत्ति का छोटा सा हिस्सा है | जबकि इस बुजुर्ग महिला ने मुझे अपने मुँह का निवाला ही दे दिया | इसकी भैंट कहीं महान है | इसलिए मैने दोनों हाथों से लिया |

जीवन मंत्र - उपहार से कहीं ज्यादा महत्व इसके पीछे छिपी भावना का है | 

Tuesday, 30 May 2017

ना हो बर्बादी



एक बार की बात है गाँधी जी को किसी काम के लिए नीम के पत्तों की जरुरत पड़ी | उन्होंने अपने आश्रम में एक युवक से कहा कि बाहर जाओ और दो पत्ती नीम तोड़ के ले आओ | वह युवक गया और आश्रम में लगे पेड़ से नीम की एक टहनी तोड़कर ले आया | उसने नीम के टहनी लाकर गांधीजी को दे दी | गांधीजी ने जब नीम के टहनी देखी तो वे दुखी हो गए | गाँधी जी बोले - अब मै इस नीम का इस्तेमाल नहीं कर पाउँगा | युवक को कुछ समझ नहीं आया | वह आश्चर्य से गांधीजी की ओर देखने लगा | गांधीजी बोले - मुझे खुद जाकर नीम लानी चाहिए थी | युवक से रहा ना गया और उसने गांधीजी से दुखी होने का कारण पूछा तो गांधीजी बोले - मैने तुमसे दो पत्ती नीम की मांगी थी | तुम पूरी टहनी ले आए हो | इससे शेष पत्तियां बेकार हो गई है | मुझे इसी बात का दुःख है | युवक के मन में अभी भी संशय कायम था | गांधीजी ने उसे कहा - हमें उतनी ही वास्तु लेनी चाहिए, जिसका उचित उपभोग हम कर सके | बेवजह ज्यादा वस्तुएं ले लेने से या संग्रह करके रख लेने का तरीका गलत है | इससे प्रकृति को भी नुकसान पहुँचता है, जैसा कि अभी हुआ है | युवक अब मूल बात समझ गया था कि गाँधी जी को प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी से दुःख पंहुचा है | इससे युवक ने भविष्य में सावधानी बरतने का निश्चय किया |

जीवन मंत्र - हमें बेवजह चीज़ की बर्बादी नहीं करनी चाहिए, उतना ही ले जितनी आवश्यकता हो |

Sunday, 7 May 2017

भगवान की गोद


एक बार की बात है, एक आदमी भगवान का बड़ा भक्त था | बड़े प्रेम भाव के साथ उनकी भक्ति किया करता था |  एक दिन भगवान से कहने लगा - में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ, पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई | में चाहता हूँ कि आप भले ही साक्षात् दर्शन न दे, परन्तु कुछ ऐसा करे कि मुझे आपके साथ होने का अनुभव तो हो | भगवान ने कहा ठीक है | तुम रोज सुबहे समुंद्र किनारे सैर पर जाते हो न | कल से रोज रेत पर तुम्हे तुम्हारे पैरों के अलावा दो पैरों के निशान और मिलेंगे | वे निशान मेरे होंगे | इस तरह तुम्हे रोज मेरी अनुभूति होगी | अब वह जब भी  सैर पर जाता तो अपने पैरों के निशान के साथ दो और पैरों के निशान देख बहुत खुश होता | एक बार उसे व्यापार में बहुत घाटा हुआ, भारी नुकसान की वजह से सब कुछ बिक गया और वह सड़क पर आ गया | उसके सभी परिचित ने उससे मुँह मोड़ लिया | कंगाल हो जाने के बाद जब वह सैर करने गया तो उसे रेत पर भी सिर्फ दो ही पैरों के निशान दिखे | उसे बहुत दुःख हुआ कि भगवान ने भी उसका साथ छोड़ दिया | धीरे धीरे उसकी आर्थिक हालत सुधरी तो लोग तो लौटे, साथ ही रेत पर दो निशान भी लौट आये | अब वह भगवन से नाराज होकर बोला - आपने भी मुसीबत में साथ छोड़ दिया था ? रेत पर सिर्फ दो निशान होते थे | तब भगवान बोले - में ऐसा कैसे कर सकता हूँ ? तब तुम इतना टूट गए थे कि चलने लायक भी नहीं थे | मैंने तुम्हे अपनी गोद में ले लिया था | वे निशान मेरे ही पैरों के थे | अब तुम फिर समर्थ हो तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है |

जीवन मंत्र - खुद को कभी अकेला न समझे, फिर मुसीबत से उबरने की हिम्मत आ जाएगी |