एक बार की बात है गौतमबुद्ध पाटलिपुत्र पहुंचे तो वहां का हर व्यक्ति उन्हें उपहार देने लगा | राजा ने भी उन्हें बेहद कीमती हीरे मोती के उपहार दिए | बुद्ध ने इन्हे एक हाथ से स्वीकार किया | इसके बाद मंत्रियों, साहूकारों, सेठों ने भी कीमती उपहार दिए | बुद्ध ने उन्हें भी एक हाथ से स्वीकार किया | इतने में एक बूढ़ी महिला वहां आई | बुद्ध से मिलकर वह बोली - प्रभु, जब आपकी आने का समाचार मिला, तो में अनार खा रही थी | मेरे पास और कुछ तो नहीं है , लेकिन अपना आधा खाया हुआ अनार आपके लिए ले आई हूँ| उम्मीद है, आप मेरी इस छोटी सी भेट को स्वीकार कर लेंगे | बुद्ध ने दोनों हाथों से वह आधा अनार स्वीकार कर लिया | यह देख राजा ने बुद्ध से कहा - महाराज एक प्रश्न है | बुद्घ ने जब पूछने को कहा तो राजा ने कहा - हमारे कीमती उपहार आपने एक हाथ से लिए जबकि उस महिला के जूठे फल के लिए दोनों हाथ फैला दिए | ऐसा क्यों ? बुद्ध बोले - आपके डिम्ति उपहार आपकी संपत्ति का छोटा सा हिस्सा है | जबकि इस बुजुर्ग महिला ने मुझे अपने मुँह का निवाला ही दे दिया | इसकी भैंट कहीं महान है | इसलिए मैने दोनों हाथों से लिया |
जीवन मंत्र - उपहार से कहीं ज्यादा महत्व इसके पीछे छिपी भावना का है |