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Sunday, 26 March 2017

सन्देश समानता का


एक बार की बात है, स्वामी रामानुजाचार्य शरीर से काफी कमजोर थे । वह रोजाना गंगा स्नान के बाद ही कोई काम करते थे । घाट की सीढ़ियां बहुत ऊँची थी इसलिए उन्हें चढ़ने और उतरने में काफी दिक्कत होती थी । वह जाते समय एक ब्राह्मण की मदद लेते और लौटते समय एक निम्न जाति के एक व्यक्ति के कंधे पर हाथ रख कर ऊपर आते ।  उनके इस व्यवहार को साधु संत उचित नहीं मानते थे । लेकिन संकोचवश उनसे कुछ कह नहीं पाते थे । एक बार एक शिष्य से रहा नहीं गया और उसने कह ही दिया, "स्वामीजी, आपके स्नान का क्या लाभ ? आप स्नान से पहले तो ब्राह्मण की मदद लेते है लेकिन शुद्ध होकर लौटते समय आप निम्न  जाति के आदमी के कंधो का सहारा लेते है । इससे तो आप स्नान के बाद भी अपवित्र रहते है ।" स्वामी से मुस्कुराते हुए बोले, 'यह तुम्हारे मन का भ्रम है बेटा । नहाने में केवल मेरे ऊपरी शरीर का मैल धुलता है । शरीर के अंदर का मैल तो वैसे का वैसा ही रहता है । यह तो उस व्यक्ति के साथ आने पर ही धुलता है, जिसे तुम नीची जाति का कहते हो । उसे गले लगा कर में समानता का सन्देश देता हूँ । इससे मेरा मन शुद्ध हो जाता है |'  स्वामी जी के मुख से ऐसे शब्द सुनकर वह शिष्य आगे कुछ बोल ही ना सका ।

जीवन मंत्र - भेद भाव रखना गलत है तथा तन और मन दोनों को शुद्ध रखे |

Saturday, 25 March 2017

चार मोमबत्तियां


एक बार की बात है, 4 मोमबत्तिया अँधेरे में जल रही थी । अचानक ही वे एक दूसरे से अपने दिल की बात करने लगे । पहली  मोमबती बोली, "में शांति हूँ । लेकिन हर तरफ मची भागदौड़ और आपाधापी को देख कर लगता है कि किसी को मेरी जरुरत ही नहीं है । में यहाँ और नहीं रह सकती ।" यह कहते ही वह बुझ गई । दूसरी मोमबत्ती बोली - "में विश्वास हूं लेकिन हर ओर  फैले झूठ-फरेब को देख कर लगता है कि मेरी किसी को जरुरत नहीं है । में भी यहाँ नहीं रहना चाहती |" यह कह कर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई । अब तीसरी मोमबत्ती भी बड़े दुःख के साथ बोली - " में प्रेम हूँ । में हमेशा जलती रह सकती हूँ लेकिन मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं रह गया । मेरे यहाँ रहने का कोई तात्पर्य नहीं ।" और ये कह कर तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई । तभी एक छोटा बच्चा कमरे में आया तो रुँआसा हो कर बोला - "तुम तीनो मोमबत्तियां बुझ क्यों गई ?" तब चौथी मोमबत्ती बोली, "रोओ मत बच्चे, में आशा हूँ| में जल रही हूं । जब तक में हूँ तब तक हम दूसरी मोमबत्तियों को दुबारा जला सकते है |" बच्चे की आँखों में चमक आ गई और उसने आशा से प्रेम, विश्वास  और शांति को फिर से जला दिया ।

जीवन मंत्र - अगर आप आशावान है तो जीवन में सब संभव है । 

आत्मग्लानि - अच्छाई की निशानी


एक बार की बात है एक थे बाबा भारती और एक उनका घोड़ा था जिसका नाम धनु था ।  धनु ऐसा फुर्तीला था की हवा से बातें करता । बाबा उसका खयाल अपने से भी ज्यादा रखते थे । एक बार एक डाकू उनके पास आया । धनु की फुर्ती देख कर वह उस पर मोहित हो गया । बाबा से कहने लगा की यह घोडा मुझे दे दो । बाबा ने मन किया तो जाते जाते बोला कि घोड़ा तो में लेकर ही रहूँगा बाबा । अब क्या था बाबा न सो पाएं, न खा पाएं । रात में उठ उठ कर धनु को देखने अस्तबल जाते । उनके मन में के दर बैठ गया एक दिन धनु पर सवार होकर बाबा भारती जंगल से गुजर रहे थे तो एक अपाहिज मिला । वह बोला कि बाबा, कृपा होगी अगर आप मुझे पास के गॉव में छोड़ दे तो, में चलने में असमर्थ हूं । बाबा ने हाथ देकर उसे अपने साथ बैठा लिया । कुछ ही दूर गए थे कि अपाहिज ने बाबा को धक्का देकर घोड़े से गिरा दिया और जाते जाते बोला कि घोडा तो मेने ले लिया बाबा भर्ती । बाबा ने पीछे से आवाज़ देकर कहा कि ले लो, लेकिन एक बात सुनते जाओ । वह लौटकर आया तो तो बाबा ने कहा कि इस बारे में किसी और को न कहना, नहीं तो कोई लाचारों की बात पर यकीं नहीं करेगा । डाकू उस समय तो घोडा ले गया लेकिन कुछ ही दिन में वह इतनी आत्मग्लानि से भर गया कि वह घोडा खुद अस्तबल में छोड़ कर चला गया ।

जीवन मंत्र - अच्छाई से बुरी सोच को भी बदला जा सकता है । 

Sunday, 12 March 2017

पछतावा मजाक का


एक बार की बात है, एक लड़की थी प्रिया जो गॉव से शहर पड़ने आई थी और एक अच्छे स्कूल में दाखिल भी हो गई । स्कूल के बच्चे प्रिया से ज्यादा बात नहीं किया करते थे । एक बार जब क्लास में टीचर आई  तो सब उनका अभिवादन करते हुए उठ गए तब प्रिया के मुंह से 'गुड मॉर्निंग' की जगह 'गुड मोरिंग' बोला तो सब बच्चों ने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया । अब तो वो कुछ भी बोले, एक ख़ास समूह उसकी देसी लहजे का मजाक बनाने लग जाता । इस समूह की सबसे चर्चित लड़की थी करिश्मा । उसने घर जा कर प्रिया की नक़ल उतारकर मजाक बनाया तो उसकी माँ ने उसे ऐसा करे से मना किया । लेकिन करिश्मा नहीं मानी और समय बीतता गया । अब क्लास में मैडम या सर कोई भी सवाल पूछते तो एक हाथ हमेशा उठता था और वो थी प्रिया । धीरे धीरे बच्चे उससे दोस्ती करने लग गए पर करिश्मा का समूह अलग ही था । एक दिन करिश्मा बहुत बीमार पड़ गई । कई दिनों तक स्कूल नहीं आई तो स्कूल से अगर सबसे पहले उससे मिलने कोई पंहुचा तो वह प्रिया थी । करिश्मा को अपने किये पर पछतावा हुआ । प्रिया ने उससे कहा की वह आराम करे और स्कूल के काम में वह उसकी मदद कर देगी । करिश्मा को अब अपने किये पर बहुत पछतावा होने लगा । उसने प्रिया से माफ़ी मांगी और कहा की वह भी अंग्रेजी सुधारने में उसकी मदद करेगी । तब से वह दोनों अच्छी सहेलिया बन गई ।

जीवन मंत्र - किसी का व्यर्थ ही मजाक न बनाये, वह आपसे कही काबिल हो सकता है ।